फाइटर चिकित्साकर्मी नोवल कोरोना वायरस को परास्त करने के लिए युद्धरत हैं. एक टीवी चैनल से बात करते हुए ब्रिटेन के मैनचेस्टर के एक अस्पताल की क्लिनिकल हेड डा. सुनीता झा ने कहा कि डाक्टर और अन्य चिकित्सकर्मी युद्धरत हैं. और अपने कर्तव्य के निर्वाह के लिए ठीक उसी तरह समर्पित हैं जैसे युद्धकाल में सैन्यकर्मी रहते हैं.
दुनिया में जब कभी किसी देश में आपदा आयी है, चिकित्साकर्मी अपनी पूरी ताकत से फ्रंटलाइन मुकाबला कर रहे हैं. चाहे वह महायुद्धों का दौर रहा हो या अन्य युद्धों का. या फिर चेचक और प्लेग जैसी जानलेवा महामारियां रही हों. जब तक प्लेग और चेचक का रहस्य जान नहीं लिया गया उसके खिलाफ अनाम संघर्ष के बारे में कम ही जानकारियां उपलब्ध हुई. ऐसी आपदाओं के असली नायक ये ही अनाम योद्धा हैं जो खतरों से खेलते हैं.
21वीं शताब्दी की यह तीसरी महामारी है. लेकिन सार्स और इबोला की तुलना में इस का भौगोलिक प्रसार और मारक क्षमता कहीं ज्यादा प्रभावी है. हालांकि चिकित्साकर्मियों ने अपने मेडिकल ज्ञान अनुभवों के सहारे अभी तक मृत्युदर को सीमित ही रखा है.
एक अनुमान के अनुसार अभी तक दुनिया के एक करोड़ लोगों को इसके प्रभाव में होना चाहिए था. लेकिन अभी तक 10 लाख से कुछ ही ज्यादा लोग इसके शिकार हुए हैं. इसके रहस्यों पर से पर्दा उठाने के लिए वैज्ञानिक अपने तमाम ज्ञान का इस्तेमाल कर रहे हैं. वही फ्रंटलाइनर भी अपने अनुभवों का इस्तेमाल कर प्रभावितों की हिफाजत कर रहे हैं.
अब वह दौर आ गया है जब सारी दुनिया में 21वीं सदी के इस खतरनाक वायरस के खिलाफ जंग की तैयारियों के प्रति बरती गयी शासकों की लापरवाही की चर्चा की जा रही है. इन चर्चाओं पर अंकुश लगाने के लिए हर देश अपने तरीके से सूचनाओं को सीमित करने का प्रयास कर रहा है.
अनेक बड़बोले शासकों के दावों को भी चुनौदी दी जा रही है. अमरीका और ब्रिटेन का विपक्ष और मीडिया उन कमियों की लगातार चर्चा कर रहा है जो इन शासकों की कोताही का नतीजा माना जा रहा है. ब्रिटेन में टेस्ट की सुस्ती को ले कर जब आवाज उठी तो अब सरकार ने कहा है कि वह सप्ताह में 25 हजार टेस्ट करेगी. और इस माह के अंत के पहले हर सप्ताह एक लाख टेस्ट का लक्ष्य पूरा करेगी. अमरीका का भी यही हाल है.
जहां टेस्ट की गति तेज होते ही मरीजों की संख्या में बढोत्तरी हुई है. हालांकि ब्रिटेन, अमरीका और स्पेन में पिछले 48 घंटों में मरीजों की संख्या में वह रफ्तार नहीं है जो 48 घंटे पहले थी. यह संतोषजनक खबर है लेकिन ये देश अब भी टेस्ट की गति से कोई समझौता नहीं कर रहे हैं.
यदि भारत को देखा जाए तो भारत की तैयारी इन देशों की तुलना में बहुत लचर जैसी दिखती है. डा. वीणा झा ने अपने साक्षात्कार में कहा है कि ब्रिटेन के लिए अच्छी बात यह रही कि उसने मौके का लाभ उठाते हुए संभावित चुनौतियों से निपटने की तैयारी की. यह दीगर बात है कि इसके बावजूद ब्रिटेन में अब भी अनेक सवाल हैं. भारत के फ्रंटलाइनर योद्धा एक ऐसी जंग लड रहे हैं जिसमें उनके पास इक्वीमेंट्स का अभाव है.
इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. दुनिया का कोई भी युद्ध बिना तैयारी और संसाधनों के नहीं जीता जा सका है. कोरोना वायरस के खिलाफ भी इस तथ्य को याद रखने और कमियों पर रोशनी डालने की जरूरत है.
9 बजे 9 मिनट के लिए अपनी एकजुटता के लिए रोशनी जलाने के लिए जब लोग दरवाजे या बालकोनी में निकले तो उन्हें अपने इन फ्रंटलाइन योद्धाओं की अनिवार्य जरूरतों के सवाल को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए.
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